हृदय होना बहुत आसान है हर वह वस्तु जो मांसल हो सारी-सारी उम्र लगातार बिना थके फैल कर जिंदगी सहेजती हो फिर सिकुड़ कर उसे बाँटती हो हृदय हो सकती है। तुममें ये सारी आसान बातें हैं माँ, इसलिए छाती के बाहर बमुश्किल एक तुम ही हृदय हो।
हिंदी समय में स्कंद शुक्ल की रचनाएँ